होली बनी बबाले जान
होली का त्यौहार जब आता है तो अपने साथ एक अलग ही रंग साथ लेकर आता है, हर कोई इस रंग में सराबोर होना चाहंता है। यह होली ही है जो बुजुर्गो को भी रंग भरी पिचकारी से खेलने पर मजबूर कर देती है। होली जिसका इन्तजार हर एक उम्र के लोग बड़ी बेसब्री से करते है। होली के इस फाल्गुनी महीने का इन्तजार तो हमारे फेकू चचा कुछ इस तरह से करते है मानों जैसे कोई नेता चुनाव के बाद उसके परिणाम आनें का करता हो, बच्चे परीक्षा के बाद रिजल्ट आने का करते हो। बेचारे होली की तारीख के लिए तो फेकू चचा दीवाने खास हो जाते है। अब इसमे फेकू चचा का कोई दोष नही है, दोष तो उनकी उम्र का है जो हर साल होली के महीने में घटकर 25 साल हो जाती है। इस बार तो चचा एक नये प्रयोग में लगे हुये है, बोल रहे है कि अब इस नई नवेली होली में मजा नही आता है। चांहे कुछ भी हो जाये अपनी पुरानी होली को फिर से जीवित करेगे, यही कारण है कि चचा नें अब अपने नाम के अनुरूप कुछ ज्यादा ही हवा- हवाई फेकना शुरू कर दिया है - कुछ भी पूछों तो कहते है तुम क्या जानो बच्चू असली होली क्या होती है। इस बार पूरे गॉव में सभी लोग पुरानी होली के रंग में हुरयायेगे, तब तुम लोगो को पता चलेगा कि हमारे जमाने की होली क्या चीज थी। बेचारे चचा होली से पहले ही रोज सुबह से ही पूरे गॉव में घूम-घूम कर सभी बुजुर्गो को खोज रहे है लेकिन उम्मीद के मुताबिक उन्हे बुजुर्ग मिल नही पा रहे है क्योकि कुछ को तो चचा से पहले ही पिछली होली पर यमराज ने खोज लिया था और जो यमराज की खोज से बच गये थे वे बेचारे बीमारी के चलते खटिया पकड़े पड़े हुये है। लेकिन सुना है खोजने से तो भगवान भी मिल जाते है, फिर फेकू चचा जो ठहरे खोज लिया कुछ बुजुर्गो को - जो होली पर फाग गायन करेगे, नये लड़कों के लिए तो यह फाग गायन कुछ अनसुना शब्द है लेकिन चचा के साथ हैपी होली के नये प्रयोग के लिए फाग गायन की लिस्ट में लड़को नें भी अपना नाम लिखवा लिया है। फाग गायन टीम के गठन पर चचा को भरोसा तो है लेकिन कमबख्त उम्र के इस पड़ाव में पूरी तरह एश्योर नही हो पा रहे है क्योकि टीम के कुछ बुजुर्ग अपनी स्वास्थ्य रिपोर्ट बराबर चचा को दिखा रहे थे, लेकिन चचा के पुराने व्यवहार और होली प्रेम के चलते उन्हे मना नही कर पाये। लेकिन चचा भी कहां हार मानने वाले है, तभी तो चचा नें दूसरे गॉव के दो बेकअप कन्डीडेट को भी निमन्त्रण दे रखा है। अब टीम गठन के बाद चचा पूरे गॉव की नालियों से थक्केदार कीचड़ को इकठ्ठा कर रहे है क्योकि अब होली में ज्यादा समय नही बचा है। पूरे गॉव में गाय – भैस के गोबर को एक जगह पर इक्ठ्ठा कर रहे है। बता रहे है कि आज से करीब 40 साल पहले असली होली इसी थक्केदार कीचड़ से खेली जाती थी। इन्तजार के घड़िया समाप्त हुयी और होली का दिन भी आ गया। चचा सुबह से ही पुरानी होली खेलनें के लिए लड़को की फौज के साथ उतर आये है। जो राहगीर सीधे – सीधे होली के हुरदंग में स्वयं को समर्पित कर रहे है उन्हे थक्केदार कीचड़ से नहलाया जा रहा है और जो विरोध करते नजर आ रहे है, उनका चीर हरण कर नाली में लेटाकर कुछ मिनट तक डुबोकर रखा जा रहा है, जिससे नाली का पानी उनके शरीर के रोम-रोम में प्रवेश कर सके। और वे पुरानी होली से भली- भांत परिचित हो सके। जो राहगीर तेज रफ्तार के साथ शीशेबन्द वाहनों में बैठकर यह दृश्य देखते जा रहे है उन्हे चचा की फौज रोकनें का प्रयास कर रही है लेकिन असफलता हाथ लगनें पर गाय- भैस के ताजे गोबर को उन पर पीछे से फेका जा रहा है, आखिर होली है बिना होली के प्रसाद के भला कौन बच सकता है। चीर- हरण और थक्केदार कीचड़ में जबरन होली के शिकार हुयें लोगो में आक्रोस बढ़ता ही जा रहा था। गाली – गलौच और मार-पीट तक की नौबत आ चुकी थी। नतीजन होली बबाल बनती गयी और फाग गायन से पहले ही मल्हार गायन के लिए कुछ लोग थानें में चचा और उनकी फौज की शिकायत लेकर पहुंच गये। तुरन्त मौके पर पहुंच कर पुलिस नें फौज को धर दबौचा। चचा पुरानें खिलाड़ी रहे सो भागकर बचनें में सफल हो गयें, बेचारी फौज अब थानें में मल्हार गायन कर रही है। चचा की तलाश जोरो से चल रही है। पूरे गॉव में अब शान्ति का वातावरण कायम है, कानाफूसी में सब एक दूसरे से कह रहे है कि चचा की पुरानी होली के लिए सहनशीलता वाला जिगरा चाहियें जो आज कल के लोगो में कहां रह गया है। होलिका मैय्या अब आप ही चचा की रक्षा करें।
व्यंग्यकार
गौरव सक्सेना
उक्त व्यंग्य लेख को जानें - मानें समाचार पत्र "हिन्दी मिलाप" नें अपनें समाचार पत्र में दिनांक 14 मार्च 2025 को प्रकाशित भी किया है।